संसार असार है, संयम में ही सार है :- गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 16-NOV-2023 || अजमेर || संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि हम अगर अपने आप को महावीर की संतान कहते हैं,तो हमें भी उनके बताए हुए मार्ग पर चलकर उन्ही के समान बनने का प्रयास करना चाहिए। और इसी प्रयास हेतु हम प्रतिदिन प्रभु महावीर की मंगलमय जीवन गाथा को सुन रहे हैं। क्योंकि महावीर बनने के लिए महावीर को जानना भी जरूरी है। वर्धमान कुमार के नगर भ्रमण के प्रसंग सुन रहे थे,की एक जगह पर पहुंचने पर सारथी ने जब कुमार वर्धमान को बताया कि यहां पर महिलाएं बिक रही है। और जिस महिला का जैसा रूप और सौंदर्य होता है उसी के अनुरूप उसकी बोली लगती है। कुमार वर्धमान सोचने लगे की पशु पक्षियों को तो फिर भी बिकते देखा है।मगर आज महिलाएं भी बिकती है। कुमार वर्धमान सोचने लगे वाह रै इंसान,कितना नीचे गिर गया तू।जिनसे जन्म को पाया, उन्हीं को बेचने चला गया। पूछा कि इन्हें ले जाकर क्या किया जाता है। तो सारथी ने बताया कि इन्हें दासी बना लिया जाता है। और इनसे घर का सारा काम कराया जाता है। और यह लोग इन्हें अपनी वासना पूर्ति का साधन बनाते हैं।पैरों की जूती के समान इनका दुरुपयोग किया जाता है। यह सब बातें सुनकर कुमार वर्धमान व्यथित होकर महलों में आ जाते हैं। यशोदा के चिंता के कारण को पूछने पर सारा वृतांत बताते हुए कुमार वर्धमान कहते हैं कि इन सभी दृश्यों को देखकर मेरा मन संसार से उदासीन हो गया है। क्या यही संसार की हकीकत है? जहां पर शूद्रों को वेद सुनने पर मार मार कर अधमरा कर दिया जाता है। जहां पर निरप्रराध पशुओं को धर्म के नाम पर यज्ञ में होम कर दिया जाता हो। और जहां पर सरेआम महिलाओं को नीलाम किया जाता हो।मुझे ऐसे संसार में नहीं रहना, बल्कि मुझे तो ऐसा संसार बसाना है जहां ऊंच नीच का कोई भेद नहीं हो। जहां सबको सम्मान मिले। सबको समान समझा जाए। सब में प्रेम प्यार और मैत्री हो। और यह कार्य घर में रहकर नहीं किया जा सकता है। इसके लिए तो मुझे संयम जीवन स्वीकार करना होगा। संयम की बात सुनकर यशोदा मूर्छित सी हो जाती है। माता त्रिशला से शिकायत करती है, तो माता त्रिशला वर्धमान को बुलाकर कहती है कि देखो घर में रहकर ही संयम या धर्म का पालन करो। मेरे जीवित रहते हैं मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं कर सकूंगी। मोह के कारण मां संयम में बाधा बन रही थी। मगर माता-पिता की मृत्यु के पश्चात बड़े भाई नंदीवर्धन की आज्ञा लेकर 30 वर्ष की उम्र में कुमार वर्धमान ने संयम जीवन को स्वीकार किया। और संयम मार्ग में अग्रसर हो गए । भगवान के जीवन से प्रेरणा लेकर हम भी संयम का पुरुषार्थ करें। धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया। धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।

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