परिग्रह के कारणों को समझकर बचने का प्रयास करें :- गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 03-OCT-2023 || अजमेर || संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि धर्म का श्रवण मन और काया के योगो की एकाग्रता के साथ होना चाहिए। व्यक्ति अगर धर्म से जुड़ता है तो उसे सुकून व शांति मिलती है ।और इसी के विपरीत अगर वह पाप से जुड़ता है तो उसे दुख और अशांति मिलती है। हम मात्र औपचारिकता के निर्वाह के लिए नहीं सुने, बल्कि आत्मा के परिवर्तन के लिए सुने। चर्चा चल रही है,पांचवें पाप परिग्रह पर, परिग्रह के लिए कहा है कि मूर्च्छा और आसक्ति परिग्रह है।गुटखा खाने वाला व्यक्ति गुटखा खाने का परिणाम जानता है मगर वह फिर भी गुटखा खाता है। क्या कारण है? कारण है स्वाद और उसकी आसक्ति ।आप भी परिग्रह में फसते हैं तो इसके भी कारण है। पहला कारण है लालच।एक चूहा भी लालच के कारण पिंजरे में पकड़ लिया जाता है। आज भी व्यक्ति जो ठगी करता है, मिलावट करता है या पाप में जाता है तो वह लालच के कारण। दूसरा कारण है स्पर्धा आपका पड़ोसी धन में, पद में, प्रतिष्ठा में आगे बढ़ गया तो आपको दुख उत्पन्न हो जाता है और आप भी साधनों को इकट्ठा करने की दौड़ में लग जाते हैं। तीसरा कारण है प्रदर्शन। महापुरुषों ने तो फरमाया है कि व्यक्ति को ढककर खाना चाहिए, मगर आज की हालत तो यह है कि "धान थोड़ो और धगानो बड़ो" यानी थोड़ा होने पर भी ज्यादा दिखाना। गुरुदेव तो फरमाते थे की होडा होड़ में तो गोड़े ही फूटते हैं ।अतः व्यर्थ की स्पर्धा व प्रदर्शन से व्यक्ति को बचना चाहिए। चौथा परिग्रह के संग्रह का कारण है,भविष्य की चिंता। व्यक्ति अपने घर, परिवार, बच्चों की पढ़ाई, चिकित्सा व्यवस्था आदि कारणों को ध्यान में रखते हुए भी भविष्य की सुरक्षा के लिए धन का संग्रह करता है। चौथा परिग्रह का जो कारण है, वह फिर भी समझ में आता है कि भविष्य की चिंता के लिए व्यक्ति ने धन इकट्ठा किया। मगर लालच, स्पर्धा और प्रदर्शन के लिए तो कम से कम परिग्रह के पाप में पडने का प्रयास नहीं करें। व्यक्ति की इच्छाएं जितनी कम होगी, उतनी उसकी दौड़ कम होगी। परिग्रह को कम करने के लिए यह सूत्र ध्यान में रखें इंद ल मम" यानी यह मेरा नहीं है। इससे किसी के प्रति जुड़ाव का भाव नहीं रहेगा। जुड़ाव ही दुख व दर्द का कारण होता है।इसी के साथ जीवन में नियम व मर्यादाओं को स्वीकार करें और अपने धन का सदुपयोग दान आदि शुभ कार्यों में करें। धन की आसक्ति व्यक्ति की गति को भी बिगाड़ सकती है ।अतः आज दिन तक जाने अनजाने में हुए परिग्रह से बंधे पापों की आलोचना एवं प्रायश्चित करते हुए इस पाप से बचने का ज्यादा से ज्यादा प्रयास करें। आज की धर्म सभा में तिलोरा पुष्कर आदि धर्म स्थान से पधार कर श्रद्धालुजनों ने दर्शन प्रवचन व सेवा का लाभ लिया। धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया। धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेडा ने किया।

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