भगवान मुनि सुव्रत जी श्रेष्ठ व्रतो के पालक -- गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 18-OCT-2023 || अजमेर || गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि महारासा ने फरमाया कि 24 तीर्थंकर भगवान में 20 वे भगवान का नाम है मुनि सुव्रतनाथ जी।उनका नाम ही बहुत प्यारी सी प्रेरणा प्रदान करता है कि श्रेष्ठ रीति से व्रत्तों का पालन करने वाले मुनि बनो।श्रावक भी व्रत का पालन करता है,और मुनि महाव्रतों का पालन करता है। श्रावक के व्रत पश्चाखान में छूट रखी जा सकती है, मगर साधु के व्रत पालन में छूट नहीं रखी जाती है। दृढ़ता के साथ उन व्रत नियमों का पालन किया जाता है। पाच महाव्रत को मूल नियम बताए गए हैं,कोई भी परंपरा क्यों ना हो इनका पालन तो अनिवार्य होते हैं। जैसे देश के संविधान में मूल नियम यथावत रहते हैं। मगर उपनियमों में संशोधन भी किया जा सकता है। इनके पिता द्वारा इनका नाम मुनि सुव्रत रखा। इसका कारण यह था जब से प्रभु का जीव माता के गर्भ में आया, तब से ही उनकी माता मुनि के समान श्रेष्ठ विधि से व्रत का पालन करने लग गई। इसी श्रेष्ठता को ध्यान में रखकर इनका नाम मुनि सुव्रत रखा गया। पूर्व भव में इनका नाम सुश्रेष्ठ था, और उस भव में संयम जीवन को अंगीकार करके उन्होंने अपनी आत्मा को उत्कृष्ट साधना में लगा दिया। जिसका परिणाम आया कि उन्होंने तीर्थंकर पर्याय का बंध कर लिया। और मुनि सुव्रत भगवान ने संयम ग्रहण कर साधना आराधना से केवल ज्ञान को प्राप्त किया। एवं साधु साध्वी श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विद् संघ की स्थापना की। तीर्थ की स्थापना करने से यह तीर्थंकर कहलाए ।मुनि सुव्रत स्वामी का चिन्ह है कछुआ। कछुआ अपने माध्यम से सभी जीवो को संयम में जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। उसका ऊपर का खोल इतना मजबूत होता है कि कोई जानवर दात आदि भी लगाए तो वह अपने हाथ और पैरों को अंदर संकोच लेता है ,तो उसका बचाव हो जाता है। उसी प्रकार इंद्रियों का संयम रखने वाला व्यक्ति अपना बचाव कर लेता है। मगर अपनी इंद्रियों पर अंकुश नहीं रखने वाले को जीवन में पछताना पड़ता है। कछुए को असंयम का परिणाम मृत्यु के रूप में भुगतना पड़ता है । अत:जहां तक संभव हो सके, वहां तक संयम का ही जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार भगवान मुनि सुव्रत स्वामी के जीवन से पावन प्रेरणा लेकर अपने जीवन को पावन बनाने का प्रयास करेंगे तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा। धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया। धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।

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