अभिनंदन हमेशा त्याग का होता है --- गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 09-SEP-2023 || अजमेर || गुरुदेव श्री सौम्य दर्शन मुनि जी महारासा ने 24 तीर्थंकर भगवान के गुणों के वर्णन के क्रम में चौथे तीर्थंकर श्री अभिनंदन भगवान के बारे में बताया कि इनका नाम हमें बहुत बड़ी प्रेरणा प्रदान करता है। हर व्यक्ति यह चाहता है कि मेरा भी अभिनंदन होना चाहिए ,मान सम्मान होना चाहिए, लेकिन याद रखें की अभिनंदन ,नाम और मान सम्मान त्यागमे जीवन जीने वालों का होता है ।संसार के आकर्षण में ,भोग युक्त जीवन जीने वालों का कभी सम्मान नहीं होता ।बड़े से बड़े राजा ,महाराजा ,चक्रवर्ती सम्राट भी इस दुनिया में आए, कुछ दिन यहां पर रहे, रुके और फिर चले गए। आज उनको याद करने वाला और उनका नाम भी लेने वाला कोई नहीं है। मगर जिन महान आत्माओं ने त्याग में, संयम में ,साधना के क्षेत्र में कदम बढ़ाए। अपनी आत्मा और दूसरों की आत्मा को पवित्रता से जोड़ने का कार्य किया ।वह इतिहास में अमर हो गए। आज उनका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। हर जगह चाहे गृहस्थ जीवन हो या संन्यास का जीवन। अभिनंदन तो त्याग का ही होता है। संसार मे भी आप अगर सम्मान चाहते हैं तो आपको अपने धन का त्याग तो करना ही पड़ता है ।आप जब किसी संस्था या क्लब में कोई बड़ी धनराशि दान करते हैं, तभी आपको सम्मान दिया जाता है। और संयम लेने वाले दीक्षार्थी का जितना सम्मान होता है उतना शादी करने वालों का भी नहीं होता । जब किसी दीक्षार्थी का दीक्षा का प्रसंग हो,तो बहुत बड़ी संख्या में बिना बुलाए भी लोगों की भीड़ अनुमोदना हेतु पहुंच जाती है ।दीक्षार्थी तो क्या उनका परिवार भी जीवन भर के लिए सम्माननीय हो जाता है । अत:अभिनंदन प्रभु का नाम भी इस प्यारी सी प्रेरणा को प्रदान कर रहा है कि अभिनंदन चाहते हो तो त्याग के जीवन को स्वीकार करने का प्रयास करें ।अगर ऐसा प्रयास रहा तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा। धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया । धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।

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