सहनशक्ति के प्रतीक भगवान वासुदेव:गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 30-SEP-2023 || अजमेर || गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि 24 तीर्थंकर भगवान में 12 वे तीर्थंकर भगवान वासुदेव जी है ।इनके पिता का नाम वसुदेव था पिता के नाम के आधार पर और वह सब का पूजनीय बनेगा इसलिए इनका नाम वासु पूज्य रखा गया। वसु का अर्थ होता है पृथ्वी, जो व्यक्ति को पृथ्वी की तरह सहनशील बनने की प्रेरणा प्रदान करता है। जीवन में चाहे कैसी भी विकट से विकट स्थिति भी क्यों नहीं आ जाए व्यक्ति को अपनी सहनशीलता से उत्तम गुण को कभी भी खोना नहीं चाहिए। थोड़ी सी प्रतिकूल स्थितियों के आने पर व्यक्ति कहने लग जाता है कि अब सहन नहीं होता। सहन करने की भी एक सीमा होती है ।लेकिन आप विचार करें कि आज दिन तक आपने आखिर कितना सहन किया है ।क्या अपने प्रभु महावीर जितने कष्ट सहन किया? अन्य तीर्थंकर भगवान जितने कष्ट सहन किया? या पूर्वज गुरु भगवंतो ने जितने कष्ट सहन किया इतने कष्ट को सहन कर लिए है? नहीं !हम कष्ट सहना ही नहीं चाहते फिर भी कहते हैं की सहन करने की सीमा होती है, याद रखें बिना कष्ट सहे कोई महान भी नहीं बनता है। अग्नि में तपकार सोना कुंदन बन जाता है। सहनशक्ति के कारण एक तो व्यक्ति के घर का नरकमय वातावरण भी स्वर्गमय बन जाता है ।और सहन करने वाला व्यक्ति सबके आदर व सम्मान का पात्र बनता है ।वह पूज्यनीय भी बन जाता है । वासु पूज्य भगवान ने तीर्थंकर पर्याय का बंध पद्मोत्तर राजा के भव में किया। उस भव में संयम ग्रहण कर शुद्ध मन से अपने आप को प्रभु की भक्ति में समर्पित कर दिया और उत्कृष्ट रसायन आने पर तीर्थंकर पर्याय का बंध कर लिया। वासु पूज्य भगवान ने संयम जीवन अंगीकार कर साधना आराधना द्वारा केवल ज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त किया ।विचरण करते-करते जब अपने पिता की नगरी में पधारे तो उनके आगमन के समाचार देने वाले सेवक को उनके पिताजी ने साढ़े 12 करोड़ सौनया का पुरस्कार प्रदान किया। यह उनके प्रभु के प्रति गहरी प्रेम का परिचय है। वासुपूज्य भगवान का चिन्ह है भैंसा, भैंसा संकेत करता है कि मैं साहस का प्रतीक हूं तुम भी मेरी तरह साहसी बनो ।साहसी बनना, मगर अपने पद और शक्ति का कभी भी दुरुपयोग मत करना। शक्ति का दुरुपयोग करने से पूर्व रावण और कंस का जीवन देख लेना कि उन्होंने शक्ति का दुरुपयोग किया तो विनाश को प्राप्त होना पड़ा ।अतः हमें सजग व सावधान रहने की जरूरत है। और भगवान वासुदेव के जीवन से मिली सीख को जीवन में उतराने की जरूरत है। अगर हमारा ऐसा प्रयास रहा तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा। प्रातः कालीन चौमुखी पंचासन भक्तांबर पाठ, प्रवचन, प्रतिक्रमण व संवर आदि कार्यक्रमों में श्रावक श्राविकाओं की उपस्थित सराहनीय है । धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया। धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।

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