घर परिवार के वातावरण को स्वर्गमय बनाने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए --- गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि
||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 06-AUG-2023
|| अजमेर || गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महाराज सा ने फरमाया कि घर परिवार के वातावरण को स्वर्गमय बनाने के लिए आपसी प्रेम व मधुरता का होना परम आवश्यक है। और यह प्रेम का संबंध समस्त रिश्तो पर लागू होता है। रिश्तो की कड़ी में एक रिश्ता आता है देवरानी और जेठानी का ।इस रिश्ते में मधुरता बनी रहे, इसके लिए यह समझना होगा कि इस रिश्ते में टकराव और संघर्ष की स्थितियां किन किन कारणों से निर्मित होती है। इसमें पहला कारण है देवरानी जेठानी में काम को लेकर सबसे ज्यादा झगड़ा होता है ।एक काम ज्यादा करें और दूसरी कम करें तो यह संघर्ष का कारण बन जाता है।जबकि सोच तो यह होनी चाहिए की अगर में अकेली रहती तो भी तो घर का सारा काम मुझे ही करना पड़ता ।अभी कम से कम थोड़ा काम तो कम हो रहा है ।लेकिन आज की स्थिति है कि अकेले रहकर सारा काम कर लेना मंजूर कर लेंगे, मगर साथ में रहकर ज्यादा काम करना मंजूर नहीं करेंगे ।
टकराव का दूसरा कारण बच्चों को लेकर घर में देवरानी जेठानी का बच्चों के प्रति अगर भेदभाव का वातावरण चलता है कि यह बच्चा मेरा है ,और यह उसका ।तो फिर टकराव की स्थितियां निर्मित होना स्वाभाविक है ।जैसे घर में कोई भी चीज लेकर के आए हैं और देवरानी जेठानी ने एक ने अपने बच्चों को चीज ज्यादा दे दी, और दूसरे बच्चे को कम दी, तो यह भेदभाव फिर रिश्तो के बीच में दीवार का कारण बन जाता है ।
टकराव का तीसरा कारण है ईर्ष्या और जलन की भावना ।एक दूसरे को सुखी ,वह आगे बढ़ते हुए देखकर यदि जलन होती है ,तो फिर प्रयास सामने वाले को नीचा दिखाने का ,वह गिराने का होता है। जिससे फिर आपसी संबंधों में टूटन होने की संभावनाएं रहती है ।मनमुटाव पैदा हो जाता है ।
संघर्ष की स्थितियों के निर्मित होने का चौथा कारण है सहयोग का अभाव ।जिस समय पर एक दूसरे की आपस में सहयोग की जरूरत हो ,उस समय पर सहयोग नहीं करना ,ऐसा कहना कि इसने भी मेरा सहयोग नहीं किया था ।तभी दिलों में दूरियां बढ़ती है। जबकि जरूरत के समय अगर सहयोग किया जाए तो वह सहयोग सदा याद रहता है ।
अत: घर परिवार के वातावरण को स्वर्गमय बनाने के लिए काम को लेकर बच्चों को लेकर ,आपस में झगड़ा नहीं करें ,ईर्ष्या की भावना को त्याग कर ,आपसी सहयोग और सहकार के द्वारा इन रिश्तों में पवित्रता रखने का, प्रेम की मिठास को बढ़ाने का प्रयास करें ।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो अवश्य आनंद की स्थितियां निर्मित हो सकेगी।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया ।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ ने किया
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