पापों को छोड़े बिना शांति नहीं --- प्रियदर्शन मुनि महारासा
||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 19-JULY-2023
|| अजमेर || संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि जिस प्रकार अपराधी अपराध को छोड़ने पर शांति को प्राप्त करता है उसी प्रकार पापों को छोड़े बिना जीव को भी शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती है ।प्रयास रहे पहले पाप प्राणातीपाप से बचने का कि ,किसी भी प्राणी को हमारे द्वारा कष्ट नहीं हो ।आज की चर्चा का विषय है घानेंद्रीय बल प्राण हिंसा कैसे होती है घाणइंद्रिय कहते हैं नाक को, नाक के सूंघने की शक्ति को बाधा पहुंचाना घानेंद्रिय बल प्राण हिंसा है ।उसके दो विषय होते हैं पहला सुरभिगंध यानी सुगंधित पदार्थों को सूंघने की शक्ति और दूसरा दुर्भिगंध यानी दुर्गंध युक्त पदार्थों को सुनने की शक्ति ।नासिका में यह दोनों ही शक्तियां पाई जाती है इस सुनने की शक्ति को बाधा दो प्रकार से होती है द्रव्य द्वारा और दूसरी भाव हिंसा द्वारा पहेली द्रव्य हिंसा है नाक पर मुक्के आदि का प्रहार करना ,जबरदस्ती किसी को कोई बदबूदार चीज सुंघा देना यह द्रव्य घनेंद्रिय बल प्राण हिंसा के रूप है ।
भाव घानेंद्रिय बल प्राण हिंसा है ,सुगंध में आसक्ति का भाव रखना और दुर्गंध में घृणा का भाव रखना ।वास्तव में देखा जाए तो पदार्थ परिणमनशील है आज जो वस्तु सुगंध से युक्त है कल वहीं वास्तु दुर्गंध से युक्त भी हो सकती है और कल जो वस्तु दुर्गंध से युक्त थी वह आज सुगंध से युक्त भी हो सकती है ।यहां शास्त्रों में सुबुद्धि प्रधान का वर्णन आता है कि उसने राजा जितशत्रु जी को नाले के गंदे पानी को शुद्धिकरण की प्रक्रिया द्वारा स्वच्छ एवं सुगंधित करके दिखा दिया ।इसलिए सुगंध या दुर्गंध के प्रति राग और द्वेष का त्याग करके अनासक्ति भाव रखने का प्रयास रहना चाहिए ।इसी के साथ घानेंद्र्य यानी नाक व्यक्ति के सम्मान का सूचक चिन्ह भी है आप मन वचन और कर्म के द्वारा ऐसा कोई भी कार्य नहीं करें जिससे आपके सम्मान को बाधा पहुंचती हो ,यानी समस्त गलत कार्यों और बुराई का त्याग करें एवं जिन जिन कार्यों से यश और सम्मान में अभिवृद्धि हो सके ऐसे कार्य को करने का निरंतर प्रयास करना चाहिए ।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ हमारा हो पाया तो यहां घानेद्रीय और मानव जीवन का पाना सार्थक सिद्ध हो सकेगा।
आचार्य काम कुमार नंदी जी की हत्या पर मुनि प्रवर ने जैन समाज को शिक्षित करते हुए जैनत्व सुरक्षा हेतु अपना योगदान देने की पावन प्रेरणा भी प्रदान की।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया ।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
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