संयम बिना मोक्ष नहीं ---- प्रियदर्शन मुनि

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 21-JULY-2023 || अजमेर || संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि इस संसार में जिंदा कोन और मुर्दा कौन व्यवहार में देखा जाता है कि जिसमें श्वास चल रही हो, धड़कन चल रही हो और चेतना का गुण विद्यमान हो उसे जीवित कहा जाता है इसी के विपरीत गुण जिसमें नहीं ,उसे मुर्दा कहा जाता है मगर जिनवाणी यहां यह बात नहीं बता कर बताना चाह रही है कि "संजमो खलु जीवनम" यानी संयम ही जीवन है और असंयमी ही मृत्यु है उतराध्यान सूत्र के 31 वे अध्ययन में सूत्र में आता है "असंजम परिमाणमि संजम उवसंपजामी "यानी असंयम का त्याग करो और संयम तो स्वीकार करो । लेकिन जो व्यक्ति कामनाओं का, इच्छाओं का लालसा का भोगों का, और वसंत का दास बना हुआ है ,वह व्यक्ति भी मरे हुए व्यक्ति के समान है गुरुदेव हमें भी समझाते थे कि पाट पर बैठकर उपदेश देने से पहले अपने जीवन को भी चेक कर लेना कि मैं जो कुछ बोल रहा हूं उसके अनुरूप मेरा जीवन भी है या नहीं है। वरना तो अपने साथ और सबके साथ छलावा मात्र ही है। आप भी मनोरथ का चिंतन तो करते हैं कि वह दिन धन्य होगा जिस दिन मैं संयम जीवन को स्वीकार करूंगा, लेकिन केवल मात्र मनोरथो से काम नहीं होगा मनोरथो को सफल करने के लिए उस और अपने चरण भी बढ़ाने होंगे ।संयम के बिना मोक्ष नहीं है अनंत आत्माओं ने संयम जीवन स्वीकार करके मुक्ति को प्राप्त किया है ।जब तक हम अपने जीवन के असंयम के कारणों को नहीं छोड़ेंगे तब तक हमारा भी कल्याण नहीं हो सकता है । असंयम में कदम बढ़ाते हुए रथनेमी को जब राजमती ने ललकारा की दुकान है धिक्कार है तुम असंयम के कामी को कि तुम इस क्षण भंगुर जीवन में असंयम की चाहना कर रहे हो, इससे तो अच्छा तुम्हारा संयम जीवन में मर जाना ही श्रेष्ठ है। तब अन सुभाषित वचनों को सुनकर रथनेमी संयम मे मजबूत बन गए और अपने मोक्ष के चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। आपसे भी प्रश्न है कि क्या आपको संयम अच्छा लगता है ?क्या आप संयम जीवन को ग्रहण करने योग्य मानते हैं? और अगर आपको संयम जीवन अच्छा लगता है और आप इसे ग्रहण करने योग्य मानते हो तो आप आप अपनी संसार के प्रति आसक्ति और चिपकाव को छोड़ने का प्रयास करें ,और एक ही विचार जीवन में रखें कि भले ही मेरा जन्म वासना के बिस्तर पर हुआ हो मगर मेरा मरण तो साधना के संस्थारक पर ही होना चाहिए ।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा। धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया । धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया ।

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