डा. रमेश अग्रवाल की कलम से- नफरतें तब फैलती हैं जब मोहब्बत फैलाने वाले खामोश रहें

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 03-OCT-2022 || अजमेर || सिर्फ दो वर्ण का गांधी शब्द आज भी चार वर्ण के परमाणु से ज्यादा बड़ी ताकत रखता है और शायद यही वजह है कि महात्मा गांधी की मौत के 74 साल बाद भी वे ताकतें इस नाम से डरी हुई हैं जिनकी सत्ता की दुकान नफरत और सांप्रदायिकता की आधारशिला पर टिकी हुई है। गांधी का नाम इतिहास से मिटाने की कोशिशों में कामयाब न हो पाने पर इन्हीं ताकतों ने अब इस नाम पर कालिख पोतने का अभियान शुरू कर दिया है। विगत एक सप्ताह तक अजमेर में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के राजीव गांधी सभागार में गांधी महोत्सव समिति द्वारा आयोजित गांधी महोत्सव अपने इस उद्देश्य में पूरी तरह सफल रहा कि आज की पीढ़ी गांधी की आलोचना करने से पहले वास्तविक गांधी को करीब से जान तो ले। गांधी जयन्ती के दिन सम्पन्न इस कार्यक्रम का हासिल, एक वक्ता की जुबान से निकला यह सूत्र वाक्य कहा जा सकता है कि, नफरतें तब फैलती हैं जब मोहब्बत फैलाने वाले निष्क्रिय हो जाते हैं। हैरत की बात यह है कि पिछले 75 साल से जो राजनीतिक पार्टियां गांधी के नाम पर न सिर्फ राजनीतिक रोटियां बल्कि हलवा मांडा भी जीमती आई हैं आज इस नाम पर खुद ही अपराध बोध से ग्रसित नजर आ रही जबकि यह अकेला नाम उनके लिये आज भी अलादीन का चिराग साबित हो सकता है। पूरे आयोजन के दौरान कांग्रेस पार्टी से सिर्फ एक या दो सत्र में दो शख्स नजर आये, पहले डा. श्री गोपाल बाहेती व दूसरे थे महेन्द्रसिंह रलावता । छ दिवसीय इस कार्यक्रम के दौरान न सिर्फ गांधी के जीवन दर्शन पर अरुणा राय, प्रो. नरेश दाधीच व पराग मांडले जैसे प्रबुद्ध जन के विचारों नें सुप्त पड़े माहौल में जीवन फूंकने का काम किया बल्कि हजारों की संख्या में स्कूली छात्र-छात्राओं नें गांधी के जीवन को करीब से जाना। सभी धर्म के प्रतिनिधियों की शिरकत के साथ एक सर्वधर्म सद्भाव सम्मेलन भी हुआ तो नाटक, गांधी जिन्दा है का मंचन व एक कवि सम्मेलन भी। कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि राज्य में गांधीवादी अशोक गहलोत की सरकार का शासन होने के बावजूद सरकार का कोई सहयोग नहीं लिया गया । यही विशेषता यह उम्मीद भी जगाती है कि लाख विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रबुद्धजन के मन में मौजूद गांधी के प्रति विश्वास फिर एक बार प्रेम और सद्भाव का उजाला लेकर आयेगा।

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