“रोजगार का अधिकार” नियम पारित करें सरकार - डॉ. अजय कुमार मिश्रा
||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 30-JULY-2022
|| अजमेर || बाजारवाद आम जन पर अब भारी पड़ रहा है | जरूरतों और आवश्यकताओं में प्राथमिकता का निर्धारण क्षणिक विचार पर होने लगा है | पर वास्तविकता इसके साथ - साथ यह भी है की वैश्वीकरण की वर्तमान परिस्थति में आपका बाजार के प्रभाव से बचना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन जैसा है | बाजारवाद आपको ख़ुशी वस्तुओं और सेवाओं के जरिये देता है, जिसे पाने के लिए आपके जेब में पर्याप्त मात्रा में पैंसों का होना अनिवार्य है और ये पैसे तभी प्राप्त हो सकतें है, जबकि आपके द्वारा रोजगार या स्वरोजगार किया जाए | रोजगार करना आसान है क्योंकि इसके लिए पूंजी की आवश्यकता नहीं होती, जबकि स्वरोजगार के लिए पूंजी की आवश्यकता व्यवसाय की श्रेणी और स्वरुप पर निर्भर करती है | भारत में अधिकांश आबादी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से दो चार हो रही है | एक खुशियों और आवश्यक्ताओं को कल के लिए टाल करके लोग जिंदगी की गुजर बसर कर रहें हैं | महँगाई की जमीनी हकीकत किसी से नहीं छिपी है | ऐसे में सबकी पहली प्राथमिकता रोजगार पाना है | हाँलाकि पिछले कुछ वर्षो में केंद्र सरकार की पहल से स्वरोजगार करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है पर फिर भी रोजगार की मांग कही अधिक है | हाल ही में केंद्र सरकार के द्वारा सेना की नियुक्ति में किये गए बदलाव के विरोध ने यह भी सोचने पर विवश किया कि आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में रोजगार के जहाँ अवसर पहले से कम है और सरकार के थोड़े परिवर्तन से सबसे प्रभावित वही लोग महसूस कर रहें है | नतीजन विरोध का जन्म होता है | यानि की यदि हम बात अवसर की करें तो वह रोजगार के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन सिकुड़ता चला जा रहा है या यूँ कहें की सीमित होता चला जा रहा है |
हाल ही में एक खबर ने सभी का ध्यान आकर्षित किया, जिसके अनुसार - पिछले 8 वर्षो में नौकरी के लिए केंद्र सरकार को लगभग 22 करोड़ से अधिक आवेदनो प्राप्त हुए जिनमे से मात्र 7.22 लाख लोगों को ही नौकरियां प्राप्त हो सकी | यदि इन आकड़ों को प्रतिशत के रूप में देखा जाए तो सरकार एक प्रतिशत लोगों को भी रोजगार नहीं दे पायी | औसतन एक लाख से भी कम यानि की 90 हजार नियुक्तियां केंद्र सरकार द्वारा इन 8 वर्षों में प्रतिवर्ष की गयी है | विपक्ष के साथ – साथ कई बुद्धजीवी भी सरकार की इस विषय में जोरदार आलोचना कर रहें है | इस आलोचना के पीछे तर्क यह भी है कि केंद्र सरकार ने प्रतिवर्ष दो करोड़ लोगों को नौकरियां देने की बात कही थी | 22 करोड़ पर एक आश्रित जोड़े तो कुल 44 करोड़ लोगों का हित रोजगार न होने से प्रभावित होता दिख रहा है | सरकार द्वारा बताये गए आकड़ों का विवरण देखना इस लिए भी जरुरी है कि वास्तविक रूप से उसका मूल्याङ्कन किया जा सकें –
केंद्र सरकार द्वारा 8 वर्षो में दी गयी
नौकरियों का विवरण
वर्ष केंद्र सरकार को नौकरियों के लिए प्राप्त आवेदन केंद्र सरकार द्वारा दी गयी नौकरिया दी गयी नौकरियों का प्रतिशत
2014-15 2,32,22,083 1,30,423 0.56
2015-16 2,95,51,844 1,11,807 0.38
2016-17 2,28,99,612 1,01,333 0.44
2017-18 3,94,76,878 76,147 0.19
2018-19 5,09,36,479 38,100 0.07
2019-20 1,78,39,752 1,47,096 0.82
2020-21 1,80,01,469 78,555 0.44
2021-22 1,86,71,121 38,850 0.21
कुल 22,05,99,238 7,22,311 0.33
उक्त आकड़ें देश में बेरोजगारी की विषम परिस्थिति को बिना किसी तर्क और विवरण के ही प्रस्तुत कर रहें है | वेबसाइट वर्ल्ड़ोमीटर के अनुसार देश की अनुमानित वर्तमान आबादी 153 करोड़ है | जिनमे से 22 करोड़ लोगों का बेरोजगार होना एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर रहा है | केंद्र सरकार द्वारा यह भी कहा गया है की वर्ष 2024 तक 10 लाख युवाओं को नौकरियां प्रदान की जाएगी | ऐसे में सरकार पर ढेरों प्रश्न उठना स्वाभाविक है, जो सरकार 8 वर्षो में 10 लाख नौकरियां नहीं दे पायी, वह सरकार आगामी ढेड वर्षो में 10 लाख नौकरियां कैसे देगी ? स्वयं भारतीय जनता पार्टी के सांसद श्री वरुण गाँधी ने सरकार का इस मुद्दे पर जोरदार विरोध करतें हुए कहा है की ये आकड़ें बेरोजगारी का आलम बयाँ कर रहे है और उन्होंने सरकार से भी पूछा की जब देश में करीब एक करोड़ स्वीकृत पद खाली पड़े है तब इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है ?
केंद्र सरकार और राज्य सरकारें सयुंक्त रूप से इस बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार बनायीं जा सकती है क्योंकि सरकार का कार्य न केवल सामाजिक विकास करना है बल्कि अपनी प्रजा को रोजगार मुहैया कराना भी है | निजीकरण की चल रही इस आंधी में युवा बेरोजगारी न केवल बढ़ती चली जा रही है, बल्कि सरकार द्वारा हाथ पीछे खीचने से कई समस्याएं स्वतः जन्म लेने लगी है जो किसी भी देश के विकास के लिए बड़ी बाधा बन सकती है | किसी भी नियुक्ति की कड़ी प्रतिस्पर्धा इस बात का धोतक है की अवसर सीमित होने से भीड़ कितनी बढ़ जाती है | जिन लोगों को रोजगार नहीं मिलता, उन्हें यह जिम्मेदार बनाया जाता है की वो लोग योग्य नहीं है | कभी इस विषय पर बात नहीं होती की सभी के योग्यता के अनुरूप रोजगार नीति देश में कब बनायीं जाएगी | एक दो नहीं रोजगार के क्षेत्र में अनेकों असामनता भी देखने को मिलती है और कई संगठन वर्षो से संघर्ष भी कर रहें है पर उनकी बातों को सुनने और समझने का समय किसी भी सरकार के पास नहीं है | बेरोजगारी के किसी भी आँकड़ों की गणना और तुलना करने से भी बेहतर है की आप ग्रामीण और शहरी क्षेत्र का भ्रमण कर लीजिये युवाओं की बेरोजगार फ़ौज सभी प्रश्नों और आकड़ों का सीधा जबाब दे देगी | अब देश में जरूरत है की केंद्र और राज्य सरकार मिलकर के इस विस्फोटक बेरोजगारी के इस हालात को नियंत्रित करने के लिए न केवल सदन, विधानसभा में खुली बहस करें बल्कि “रोजगार का अधिकार” अधिनियम बनाये | जिसमे योग्यता के अनुरूप सभी को रोजगार प्राथमिक रूप में और रोजगार न होने की अपेक्षा में अनिवार्य स्वरोजगार की बाध्यता हो | क्योंकि रोजगार देने या स्वरोजगार की अनिवार्यता कर देने से न केवल व्यक्ति का जीवन बेहतर होगा बल्कि देश भी आर्थिक रूप से मजबूती के साथ प्रगति करेगा |
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