इस दुश्मन को दहलीज से खदेड़ना ही बेहतर- रमेश अग्रवाल

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 27-NOV-2021 || अजमेर || लड़ाई चाहे प्रतिपक्षी सेना के खिलाफ हो या फिर इन्सानियत की दुश्मन किसी महामारी के खिलाफ, युद्धनीति कहती है दुश्मन पर हमला न सिर्फ उसकी सरहद में जाकर करना चाहिये बल्कि तब करना चाहिये जब वह सुस्ता रहा हो। अपने जन्मदाता चीन की ही तरह धोखेबाज कोरोना, पिछले तीन माह से सुुस्त पड़ा हुआ था। बेहतर होता इस मौके पर हमारे कोरोना यौद्दा इसे ढूंढ कर साफ कर देते,बहरहाल यह फिर एक बार ताजादम होकर तीसरे हमले के लिये हमारी दहलीज पर आ खड़ा हुआ है। ढाई माह के अन्तराल के बाद पिछले दिनों पहला कोरोना पाजिटिव मिला और अब हर रोज चार-पांच नए रोगी मिलने का सिलसिला फिर एक बार शुरू हो गया है । अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। कोरोना के खिलाफ पिछली दो घमासान लड़ाइयों ने कई बेशकीमती सबक हमारे अनुभव की झोली में डाले हैं। वक्त है जब हम इनका फायदा उठाएं और विगत मई और जून के दौरान कई घरों में स्थायी अंधेरा कर गई मनहूसियत को दहलीज के बाहर ही ध्वस्त कर दें। सन 2020 के मार्च माह में कोरोना का पहला मरीज अजमेर के खारीकुई इलाके में मिलने के बाद भी हम सोए रहे और नतीजा यह हुआ कि भीतर ही भीतर सुलता नासूर मुस्लिम मोची मोहल्ला में लावे की तरह फूटा और पूरे शहर को लील गया। इस बार जैसा कि बताया जा रहा है कान्टेक्ट ट्रेसिंग व रेन्डम सैम्पलिंग अभी से शुरू कर दी गई है। अस्पताल व जिला प्रशासन भी एलर्ट मोड पर दिखाई दे रहा है। अस्पतालों में न सिर्फ बैड्स की संख्या पहले से डेढ गुनी हो गई है बल्कि जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के 1028 बैड अब सीधे आक्सीजन की सप्लाई से जुड़ चुके हैं। अजमेर में ही सात आक्सीजन प्लान्ट्स ने उत्पादन शुरू कर दिया है। एक और सुखद सत्य है कि अब अजमेर की लगभग 60 प्रतिशत वैक्सीन योग्य आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज तथा 90 प्रतिशत से अधिक आबादी को पहली डोज लग चुकी है। इतने सब के बावजूद अनेक चिन्ताओं को अभी भी हमें जेहन में रखना जरूरी है। जैसी कि खबरें आ रही हैं किशोर और बच्चे कोरोना की चपेट में आने शुरू हो गए हैं जबकि 18 वर्ष से कम की सम्पूर्ण आबादी अभी वैक्सीनेशन से वंचित है। ऐसे में स्कूलों का खुल जाना और आनलाइन क्लासेज का विकल्प उपलब्ध न होना फिर किसी कयामत को बुलावा दे सकता है। शहर में बाहर से प्रवेश करने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग भी अभी भी उस गंभीरता से नहीं हो रही है जितनी कि होनी चाहिये। सबसे गंभीर बात यह है कि पिछले ढाई तीन माह के दौरान आमलोग मास्क,सैनेटाइजर और डिस्टेन्स मंत्र पूरी तरह भूल चुके हैं। ऊपर से शादी ब्याह और अन्य समारोहों को मिली खुली छूट ने आग को हवा देने का काम किया है। हम सभी को याद रखना होगा कि चिकित्सा और प्रशासनिक सेना अपने हथियार तब ही काम में ले सकेंगे जब लड़ाई अपनी जमीन पर आ पहुंचेगी। दुश्मन को दुश्मन की जमीन पर जाकर परास्त करने का काम सिर्फ नागरिक सेना कर सकती है और वह भी तत्काल,आज और अभी। दैनिक भास्कर 27नवम्बर 21 में प्रकाशित

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