तीनों कृषि कानून वापस लेना, किसानों के संघर्ष की जीत

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 19-NOV-2021 || अजमेर || राजस्थान प्रदेश कांग्रेस सेवादल के प्रदेश मुख्य संगठक हेमसिंह शेखावत व प्रदेश मुख्य प्रशिक्षक शैलेन्द्र अग्रवाल ने एक बयान जारी कर कहा कि 14 महीने के लंबे संघर्ष के बाद आखिर केंद्र सरकार और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को झुकना ही पड़ा । कांग्रेस पार्टी शुरू से ही इन तीनों कृषि कानूनों को काले कानून व किसान विरोधी बताते हुए इन्हें वापस लेने की मांग करती आई है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी जी तो हमेशा यही कहते थे कि एक दिन केंद्र की नरेन्द्र मोदी जी की सरकार को यह काले कानून वापस लेने ही पड़ेंगे। जब से ये कृषि कानूनों की चर्चा हुई तभी से किसान भाई इन काले कानूनों का विरोध करते आ रहे है जिसको लेकर पूरे देश भर के किसान भाइयों में रोष व्याप्त था और लगातार अपने राज्यो में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे फिर आंदोलन दिल्ली की ओर बढ़ा और दिल्ली के गाजीपुर, टिकरी और सिंधु बॉर्डर पर लाखों किसान लगभग 11 महीने से डटे हुए थे लेकिन 700 से भी ज्यादा किसानों की शहादत के बावजूद भी अहंकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का दिल नहीं पसीजा और अब जब चुनाव सामने हैं और सरकार के मंत्री ही लगातार नरेंद्र मोदी जी को इस बात से आगाह करा रहे थे कि यदि कृषि कानून वापस नहीं हुए तो इसका खामियाजा आगामी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में केंद्र सरकार और भाजपा को भुगतना पड़ेगा। उसके बाद जाकर शुक्रवार को देश के नाम संबोधन में नरेंद्र मोदी जी ने तीनों काले कानून वापस लेने का फैसला लिया सभी को पता है कि किसान आंदोलन को कुचलने का प्रयास भी किया गया चाहे वह मुजफ्फरनगर हो चाहे वह लखीमपुर खीरी हो, पंजाब हो या हरियाणा ऐसे प्रयास किए गए जिससे किसान आंदोलन को खत्म किया जाए लेकिन किसानों के हौसले के सामने केंद्र की मोदी सरकार को झुकना ही पड़ा। इस किसान आंदोलन में कई दुर्घटनाएं हुई कई किसानों को रौंद दिया गया कई किसानों ने शहादत दी कई किसानों ने आत्महत्या कर ली। इस कड़कड़ाती ठंड में, गर्मियों में और बारिश में भी किसानों का जो जज्बा है वह नहीं डगमगाया। यह आजादी के बाद दूसरा ऐसा आंदोलन है जो इतने लंबे समय तक चला किसान भाइयों ने देश के अन्नदाताओं की आवाज बन कर पूरे देश के किसानों के हक की लड़ाई लड़ी और और आज बड़ी कामयाबी मिली । जिस तरीके से केंद्र की मोदी सरकार का अड़ियल रवैया और लगातार किसानों को परेशान करने के लिए कभी खाद के दाम बढ़ाये, कभी बिजली के यूनिटों को बढ़ाया और डीजल के दामों में लगातार इजाफा करते रहे जिससे किसान थक हार कर अपना आंदोलन वापिस कर लें।लेकिन किसानों के दृढ़ संकल्प के आगे सरकार के हर हथकंडे असफल साबित हुए। साथ ही किसानों एकजुटता का परिचय देकर लगातार बॉर्डर पर डटे रहे और केंद्र की सरकार को इस बात का एहसास दिलाते रहे कि जब तक यह किसान विरोधी काले कानून वापस नहीं होंगे तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। कभी इस आंदोलन को खालिस्तानी नाम देकर डराया गया, कभी देशद्रोही कहा गया, कभी मुट्ठीभर और कभी आढ़तिये जैसे विशेषणों से नवाजा गया।कभी कुछ असामाजिक तत्वों को इस आंदोलन के भीतर प्रवेश कराकर इस को बदनाम करने का भी प्रयास किया गया लेकिन सभी हथकंडे विफल ही साबित हुए।सत्ता लोभी मोदी सरकार को अब इस बात का एहसास हो गया था कि यदि समय पर कृषि कानून वापस नहीं लिए गए तो इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ सकता है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता लोभी है और सत्ता के लालच में किसी भी हद तक जा सकती है सामने चुनाव है और चुनाव में होने जा रही करारी शिकस्त को देखते हुए ही केंद्र कि मोदी सरकार ने यह कृषि कानून वापस लेने का फैसला लिया यह किसान भाइयों के साथ साथ पूरे देशवासियों की जीत है और यह जीत उन अलोकतांत्रिक और हटधर्मी और रूढ़िवादी लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो ये कहते थे ये विपक्ष की चाल है और कुछ चंद किसान अपने स्वार्थ के लिए किसान आंदोलन को उकसा रहे है। किसान भाइयों के इस संघर्ष और आंदोलन में अब तक जितने किसान भाइयों की जान गई या जिन्होंने भी शहादत दी या जिन की भी हत्या की गई उनके परिवारों को नौकरी के साथ साथ 50-50 लाख रुपयों का मुआवजा भी केंद्र की सरकार को देना चाहिए क्योंकि यह सरकार कृषि कानून को जबरदस्ती किसानों के ऊपर थोपने का प्रयास अपने उद्योगपति मित्रों को सीधे तौर पर सहायता पहुंचाने के लिए किया जा रहा था इसलिए यह हत्या ही कहलाएंगी। देश के अन्नदाताओं के साथ किया गया यह भद्दा मजाक केंद्र सरकार को भुगतना ही पड़ेगा वो किसी भी सूरत में इससे बच नहीं सकते।

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