साहित्यकार रजेश भटनागर की कविता- कैसे लौटा दूं-

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 01-SEP-2021 || अजमेर || साहित्यकार रजेश भटनागर की कविता- कैसे लौटा दूं------------- कविता- कैसे लौटा दूं हाँ, तुम्हारा कुछ सामान मेंरे पास पड़ा है और तुम्हारी इच्छा का शूल मेरे दिल में अड़ा है सामने मेरे सवालों की दीवार खड़ी है कुछ सावन के भीगे दिन और सीले सपनों-सी लिपटी रात पड़ी है वो रात कैसे भुला दूं तुम्हारा सामान कैसे लौटा दूं ...। पतझड़ के पत्तों को तुमने फूल बनाया उन प्यार के फूलों से दिल का चमन खिलाया उन फूलों की ख़ुश्बू साँसों में डोल रही है और मीठे गीतों की सरिता शहद सा घोल रही है स्नेह सिक्त सरिता कहां बहा दूं तुम्हारा सामान कैसे लौटा दूं ..। बिन छतरी के नंगे सिर भागे थे घर को छू दिया था अंगुली से तुमने जलते अधर को और ज़ुल्फ़ों से मोती जो तुमने झटके थे गीला तकिया-तौलिया बिस्तर पर पटके थे मन की अलगनी पर टंगा कैसे भिजवा दूँ तुम्हारा सामान कैसे लौटा दूं..। शरद पूर्णिमा की चांदनी रात और लहराते सागर का वो तट झील सी गहरी आंख तुम्हारी और सलोना घूंघट का पट ना कोई झूठ-मूठ के वादे दिल के सच्चे सब थे इरादे याद मुझे वो कैसे भुला दूं तुम्हारा सामान कैसे लौटा दूं..। नहीं इज़ाज़त दूंगा तुमको नहीं इन्हें तुम दफ़नाना सीने में लिए सारी यादें बस हमें है मर जाना ...। ********* © राजेश कुमार भटनागर

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