कोरोना और प्राचीन देशी यूनानी चिकित्सा पद्धति- डॉक्टर मोहम्मद रोशन यूनानी चिकित्सा प्रभारी

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 03-APR-2020
||अजमेर|| कोरोना और प्राचीन देशी यूनानी चिकित्सा पद्धति



इतिहास:-कोरोनावायरस (Coronavirus) कई प्रकार के विषाणुओं (वायरस) का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग उत्पन्न करता है। यह आरएनए वायरस होते हैं। सम्भव है कि यह आरम्भ में चमगादड़ से मानव में फैला हो क्योंकि इस वायरस का चमगादड़ों में पाए जाने वाले कुछ कोरोना वायरस से अनुवांशिक समानताएँ मिलती है।यह भी माना जा रहा है कि यह वायरस पैंगोलिन से मानव में फैला हो। इसका प्रसार मुख्य रूप से खांसी और छींक से बूंदों के माध्यम से होता है। दूषित सतहों के माध्यम से अप्रत्यक्ष संपर्क, संक्रमण का एक और संभावित कारण है। इनके कारण मानवों में श्वास तंत्र संक्रमण पैदा हो सकता है जिसकी गहनता हल्की (जैसे सर्दी-जुकाम) से लेकर अति गम्भीर (जैसे, मृत्यु) तक हो सकती है गाय और सूअर में इनके कारण अतिसार हो सकता है जबकि इनके कारण मुर्गियों के ऊपरी श्वास तंत्र के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कोई टीका (वैक्सीन) या विषाणुरोधी (antiviral) अभी उपलब्ध नहीं है और उपचार के लिए प्राणी की अपने प्रतिरक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है। अभी तक रोगलक्षणों (जैसे कि निर्जलीकरण या डीहाइड्रेशन, ज्वर, आदि) का उपचार किया जाता है ताकि संक्रमण से लड़ते हुए शरीर की शक्ति बनी रहे।चीन के वूहान शहर से उत्पन्न होने वाला 2019 नोवेल कोरोनावायरस इसी समूह के वायरसों का एक उदहारण है, जिसका संक्रमण सन् 2019-20 काल में तेज़ी से उभरकर 2019–20 वुहान कोरोना वायरस प्रकोप के रूप में फैलता जा रहा है। हाल ही में WHO ने इसका नाम COVID-19 रखा। लेटीन भाषा में "कोरोना" का अर्थ "मुकुट" होता है और इस वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए कांटे जैसे ढाँचों से इलेक्ट्रान सूक्षमदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखता है, जिस पर इसका नाम रखा गया था।


यूनानी चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार :-  कोरोना वायरस से खिवते दम यानी खून के दोषित हो जाने के कारण कोविड -19 अर्थात कोरोना रोग उत्पन्न होता है यह एक तीव्र संक्रमित रोग है जो महामारी के तौर पर एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति तक बहुत तेजी से फैलता है। लगभग 120 नैनोमीटर साइज वाले कोरोना वायरस की सूक्ष्मदर्शी बाहरी सतह पर मुकुट नुमा उभार होते है । यह वायरस श्वास तंञ पर ( सांस की नलियों) संक्रमण करता है। इस वायरस का संक्रमण होने पर यह मरीज़ के गले की कोशिकाओं को संक्रमित करके अपनी संख्या बढ़ाता है तथा वहां पर सूजन व रिसाव पैदा करता है, जिससे तेज बुखार, लगातार खुश्क या सूखी खाँसी और साँस लेने में दिक्कत होने लगती है यह बीमारी साँस की दुशवारी से लेकर जान लेवा तक हो सकती है इसलिए संदिग्ध रोगी को तुरन्त उच्च स्तरीय  चिकित्सा केन्द्र पर जाँच हेतु रैफर करना चाहिए।


संक्रमण:- इस बीमारी का संक्रमण , रोग ग्रस्त मरीज़ की छींक तथा खांसी से निकलने वाली छोटी- छोटी तरल बूदों ( ड्रॉप्लेट्स) के जरीयें फैलता है ये संक्रर्मित बूदें जब कोई व्यक्ति अपने साँस के साथ अन्दर लेता है तो उसको ये बीमारी हो जाती है। याद रहे की ये संक्रर्मित बूदें लगभग 6 फीट ( 1.8 मीटर) के घेरे में होती है तथा आस-पास की सभी चीजों को संक्रर्मित करती है जब कोई व्यक्ति अपने आप- पास की किसी भी संक्रर्मित चीज को छू कर अपने मुह, नाक या आँख को छूता है तो यह वायरस उस व्यक्ति के शरीर में दाखिल हो जाता है । एक संक्रर्मित बूंद का साइज 5 मिक्रोन्स या इससे भी कम होता है जबकि इंसानी हवा का साइज 60.120 मिक्रोन्स होता है एक सामान्य खाँसी में लगभग 3000 संक्रर्मित बूंदे तथा छींक में लगभग 40000 नसंक्रर्मित बूंदे होती है संक्रर्मित होने वाली विभिन्न सतहो पर इस वायरस के जिंदा रहने की अवधि अलग- अलग होती है । जो कुछ घंटो से कुछ दिनो तक हो सकती है यह वायरस हवा में 3 घंटे, लकड़ी/ कार्डबोर्ड पर 24 घंटे, धातु / प्लास्टिक तथा स्टील से बनी वस्तुओं पर 72 घंटे ( 3 दिन) तक और काँच से बनी वस्तुओं पर 96 घंटे ( 4 दिन ) तक जिंदा रह सकता है वायरस की जिंदगी जगह और तापमान पर भी निर्भर  करती है ।


लक्षण:- सामान्य तौर पर हलकी बीमारी पैदा करने वाले ह्यूमन
कोरोना वायरस की विभिन्न प्रजातियां जैसे ओसी.43, ईचकेयु-1, एनएल .63, 229 ई, केवल नज़ला व ज़ुकाम पैदा करते है और  कोई गंभीर बीमारी नही होती है। लेकिन इसकी दुसरी प्रजातियां काफी घातक हो सकती है जैसे एमईआरएस कोरोना वायरस, एसएआरएस कोरोना वायरस तथा नोवेल कोरोना वायरस- 2019 जोकि बिल्कुल नई प्रजाति है जो दिसंबर 2019 में चीन के बुहान शहर में प्रकट हुई, वहां से यह रोग संक्रर्मित लोगों के द्वारा संसार के विभिन्न हिस्सों में पहुँच गया। जोकि साँस की दुशवारी से लेकर जान लेवा तक हो सकती है।शुरू में यह बीमारी मामूली होती है और धीरे- धीरे गम्भीर होती जाती है मरीज़ को बुखार, थकान तथा सूखी खाँसी के साथ नाक बन्द होना और गले में खराश़ होने लगती है 80 प्रतिशत मरीज़ बिना किसी विशेष इलाज के साधारण इलाज से सही हो जाते है 20 प्रतिशत मरीजों में ये बीमारी गम्भीर होने लगती है साँस की तकलीफ होने लगती है और इन मरीज़ों को विशेष इलाज की जरूरत पढ़ती है 5 प्रतिशत मरीज़ों में यह बीमारी जान लेवा हो सकती है अधिकतर बूढे़ मरीज़ों में खासतौर पर अन्य बीमारियों जैसे डायबिटीज, कैंसर, हारपरटेंशन, अस्थमा, हदय रोग से ग्रस्त मरीज़ों तथा ट्रांसप्लांट किये गये लोगों में और 5 साल से छोटे बच्चों में यह बीमारी गंभीर रूप ले सकती है। क्योकिं इन लोगों में बिमारियों से लड़ने की क्षमता ( इम्युनिटी) कम होती है


बचाव :- आप वायरस से खुद को बचाने के साथ ही इसे फैलने से रोकने में भी मदद कर सकते हैं. इसके लिए आप: नियमित रूप से साबुन और पानी से या अल्कोहल वाले हैंड सैनिटाइज़र से 20 सेकंड तक हाथ धोएं। खांसने और छींकने के दौरान डिस्पोज़ेबल टिशू से या कोहनी को मोड़कर, अपनी नाक और मुंह को ढकें। जो लोग बीमार हैं उनसे (एक मीटर या तीन फ़ीट की) दूरी बनाए रखें। घर पर ही रहें और अगर आप बीमार हैं, तो खुद को परिवार के सभी लोगों से अलग कर लें। अगर आपके हाथ साफ़ नहीं हैं, तो अपनी आंख, नाक या मुंह को न छुएं। रोगी को अलग हवादार कमरे में रखें और उससे सामाजिक दूरी बनायें रखें और रोगी को पूणर्त: आराम करायें।


यूनानी उपचार :- अगर मरीज़ की हालत सामान्य हो और आपके  आस-पास में विशेष उपचार की व्यवस्था न हो तो निम्नलिखित यूनानी उपचार करें। 


(1) दवा तिरयाक वबाई :-  महामारी बीमारियों के संक्रमण से बचने के लिए तिरयाक बवाई एक विशेष यूनानी औषधी है जिसका इस्तेमाल प्राचीन काल से ही यूनानी विशेषज्ञो द्वारा ताऊन, हैजा और चेचक जैसी धातक बीमारियों से बचाव हेतु होता रहा है । हकीम जालीनूस ( 129- 200 AD) के अनुसार जिन लोगों ने महामारी के दौर में तिरयाक वबाई दवा का उपयोग रोग निरोधक के तौर पर किया उनमें से ज्यादातर संक्रमण से बचे रहे। 


नुस्खां :- सिब्र जर्द 12 ग्राम, मुर मक्की 12 ग्राम, जाफरान 12 ग्राम इन सब औषधियों को 120 एम एल अर्क गुलाब में खूब अच्छी तरह खरल करें फिर काला चने के बराबर गोलियाँ बनाकर चांदी का वर्क चढ़ाकर सुरक्षित रख लें और एक गोली सुबह खाली पेट या रात को सोते समय 120 मिली अर्क बादयान या पानी के साथ सेवन करें।  महामारी के दौरान सप्ताह में 3 गोली का प्रयोग करें ।


(2) खमीरा मरवारीद खास/ खमीरा बनफ्शा् 3 ग्राम सुबह - शाम खाली पेट सेवन करें फिर उसके बाद शर्बत खाक़सी 20 मिली और लऊक सपिस्तां ख्यार शम्बरी 5 ग्राम हर 3 घण्टे पर खाकर ऊपर से अर्क गावजबाँ 120 मिली या गुनगुना पानी पियें।


(3) बिहिदाना 3 अदद, उन्नाब 5 अदद, सपिस्ताँ 9 अदद, बर्ग गावजबाँ 5 ग्राम, नीम गिलोय 6 ग्राम , तुख्म खतमी 6 ग्राम को एक गिलास पानी में पकायें जब आधा पानी रह जायें तो उसे छान लें उसमें खा़कसी 6 ग्राम छिड़ककर शर्बत जुफा मुरक्कब 20 मिली मिलाकर सुबह-शाम खाली पेट पिलायें।


(4 ) शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए खजूर, कलोंजी, बादाम, काली मिर्च, मुनक्का, तुलसी, शहद और विटामीन सी का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें ।


उपरोक्त सभी यूनानी औषधियां यूनानी चिकित्सक की देखरेख में इस्तेमाल करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें।
डॉ मोहम्मद रोशन ( चिकित्सा अधिकारी)
राजकीय यूनानी औषधालय  रूम नम्बर 115 , जेएलएन अस्पताल परिसर अजमेर मोबाईल नम्बर 9352547335


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